मैं नारी हूं
मैं नारी हूं
मैं नारी हूं
मायके की एक छोटी क्यारी और ससुराल की फुलवारी हूं
हंसना खेलना लड़ना झगड़ना से शुरू की थी जिंदगी
अब पूरी कायनात का बोझ उठाती हूं
अपने घर का ही नहीं समाज का भी मान रखती हूं
दिल में ढेरों मचलते हैं अरमान ....
मगर घर की चाबियों की तरह उस पर भी निगरानी रखती हूं
बुजदिल नहीं, ना ही कायर हूं
दुनिया के बोझ तले घायल हूं
पांव में पहनी मर्यादाओं के पायल
ब्याहता की निशानी पहनी बिछिया हूं
अंगुलियों में है डोर नये रिश्तों के
हाथों में बेड़ियां सी कंगन है
बंधी हूं मंगलसूत्र से
और सर पर ताज है
सिंदूर का
बुजदिल नहीं , ना ही मैं कायर हूं
जिम्मेदारियों से भरी एक सुहागन हूं
मैं नारी हूं
मायके की एक छोटी क्यारी
ससुराल की फुलवारी हूं ।