STORYMIRROR

Prangya Panda

Others

4.3  

Prangya Panda

Others

मैं लिखती हूँ

मैं लिखती हूँ

1 min
333


मैं लिखती हूँ क्योंकि मेरे रग रग में

कविता के अल्फ़ाज़ रहते हैं, 

मेरे कविता में तो सिर्फ ज़ज़्बात ही

ज़ज़्बात बहते हैं। 

कभी दर्द तो कभी खुशी से लोगों के

दिल पर छाती हूँ, 

हर दुखी चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान

लाती हूँ।


कभी माँ का ज़िक्र करती हूँ, 

तो कभी दोस्तों का चित्र बनाती हूँ। 

कभी परिवार की अहमियत को

दर्शाती हूँ, 

कभी दुनिया में फैली भ्रष्टाचार की

वर्णन करती हूँ। 

मैं लिखती हूँ वही जो मेरा दिल

कहता है, 

लिखती हूँ उस दर्द को जो हर

किसान सहता है। 


शब्दों से रिश्ते गहरे बनाती हूँ, 

ज़ज़्बातों से कविता की शान

बढ़ाती हूँ। 

कभी माँ की ममता को अल्फ़ाज़

देने की कोशिश करती हूँ, 

कभी पिता के संघर्ष से दुनिया को

मिलवाने की प्रयत्न करती हूँ। 

जो भी मैं लिखती हूँ उस पर ज़ोर

मेरा नहीं होता है, 

पन्नों पर वही दिखते हैं जो मेरे दिल

में होता है। 

पन्नों को स्याही के रंग से भरती हूँ, 

हर भावनाओं की कदर अपने लेख

से करती हूँ। 



Rate this content
Log in