मैं क्यूँ हूँ पराई
मैं क्यूँ हूँ पराई
जानकी वन में श्रीराम के संग चली
उर्मिला का है तप भर जलधि अंजुली
क्या पराकाष्ठा है सती प्रेम की
शिव की निंदा पे योग अग्नि में थी जली
रूप जितने लिए मुंहदिखाई हुई
फिर भी दुनिया में मैं क्यूँ पराई हुई
मिल न पाई कभी और मिल भी लिया
त्याग राधा का है पल में युग जी लिया
प्रेम में था भरोसा बहुत श्याम पर
ज्ञात था फिर भी मीरा ने विष पी लिया
जाने जग कि ग़लत जगहँसाई हुई
फिर भी दुनिया में मैं क्यूँ पराई हुई
गार्गी ने हॄदय जीता था काज से
ताज मनु ने गिराए थे आवाज़ से
मृत्यु हारी थी सावित्री के वाद पर
प्राण पति के ले आई थी यमराज से
एक मूरत हूँ प्रभु की बनाई हुई
फिर भी दुनिया में मैं क्यूँ पराई हुई
सुष्मिता, फातिमा ने गज़ब कर दिया
कल्पना ने जो चाहा वो सब कर दिया
भाग्यश्री, इंदिरा, देविका थी प्रथम
क्षेत्र में अपने किस्सा अजब कर दिया
इस धरा से गगन तक हूँ छाई हुई
फिर भी दुनिया में मैं क्यूँ पराई हुई
