मैं कविता हूं
मैं कविता हूं
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मैं मन का भेद हूं,
मैं दिल का दर्द हूं।
मैं रसों का श्रृंगार हूं,
मैं भाव का रूप हूं।
मैं साहित्य की जननी हूं,
मेरा कोई प्रारंभ नहीं और न ही कोई अंत है ।
मैं दिलों को जोड़ कर रखती हूं,
मैं समय काल हूं।
मैं संसार हूं,
मैं पुष्प सी अभिलाषा हूं।
आनंत काल तक पढ़ा जाएगा,
मुझको मैं वह कविता हूं।
