मैं एक कागज़ का टुकड़ा हूँ..
मैं एक कागज़ का टुकड़ा हूँ..
मैं एक कागज़ का टुकड़ा हूँ..
कभी कोरा, शब्दों के इन्तजार में
कभी भरा, कलम की मार से!!
कभी मोहब्बत में चूर, प्रेम पत्र बन
कभी खबरों का ढेर, अखबार बन!!
कभी दर्द की ज़ुबानी, कहानी बनी
कभी बचपन की सहेली, कश्ती बनी!!
कभी पतंग बन, खुले आकाश में उड़ी
कभी बंद डायरी बन, किसी कोने में पड़ी!!
कभी दिल का राज़, स्याही से खोला;
कभी आत्मा का आक्रोश, दवात ने बोला!!
मैं तो बस खामोश, निस्वार्थ जीता रहा
पंचभूत से जन्मा, उसी में घुलता रहा!!
मैं एक कागज़ का टुकड़ा हूँ...