मैं देव लोक से आई थी
मैं देव लोक से आई थी
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मैं देव लोक से आई थी
देवों ने ही अपनाई थी ।
इतिहास पुराना है मेरा
मैं आई लगा लगा फेरा ।
देवों के पास रुकी आकर
वे खुश थे मुझ को अपना कर ।
थी रूप गठन से रानी मैं
हूं परदादी परनानी मैं ।
अब केवल उनकी दासी हूं
मृतप्राय पड़ी अबला-सी हूं ।
अब कौन मिले मुझ दुर्बल से
रोका, न दिया मिलने सबसे ।
जब से भारत में आई हूं
जनता के लिए पराई हूं ।
मैं अब साक्षात निराशा हूं
भारत की संस्कृत भाषा हूं ।
