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Dhirendra Panchal

Others

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Dhirendra Panchal

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मैं भी चौकीदार

मैं भी चौकीदार

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भारत माँ की पीड़ा गाने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


मखमल के गद्दे हैं मिलते चाटुकार गद्दारों को।

कड़ी सुरक्षा मिलती देखो दारू व ठेकेदारों को।

मजलूमों के दर्द सुनाने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


माँ रोती है भूखे बच्चे की कोई जुगत लगाती है।

ईंट के भट्ठे कल कारखाने में वो खटने जाती है।

खुद की थाली रोज सजाने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


जिस देश में अन्तर्मन से बिलख रहे नवजात।

लगता घोर प्रभंजन वाली होगी फिर बरसात।

एक सांस में मानस रटने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


पेट की अग्नि सह जाते हैं ऐसे कुछ किरदार।

सबको अमृत बाटेंगे हम कहता है अखबार।

खुद को राम - रहीम बताने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


बौने हैं किरदार तुम्हारे बौने सब आयाम।

भूखे पेट सिखाता सबको करना प्राणायाम।

आसमान से फूल गिराने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।


दरबारों में कलम बेंच दी शर्म नहीं फनकारों को।

निद्रा कैसे आती होगी दिल्ली के सरदारों को।

देश बेंचकर देश बचाने वाले वे सब कहाँ गए।

मैं भी चौकीदार बताने वाले वे सब कहाँ गए।



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