मैं भारत
मैं भारत
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मैं भारत ...
आज विवश बेहाल बेरंग-सा
अपनी खोखली जड़ों को समेटता
भ्रष्टाचार, वासना अराजकता
की दीमक में लिपटा किसी ठूँठ- सा
खो रहा हूँ शनै:शनै: अपनी आभा।
मैं भारत...
जो प्रतीक था समृद्धि व खुशहाली का
अखंडता का और संस्कारों का
ज्ञान- विज्ञान की पराकाष्ठा का
मुनियों व वीरों की गौरव गाथा का
बाँच रहा हूँ बस अपनी व्यथा।
मैं भारत ...
देख रहा हूँ प्रत्यक्ष बस मौन खड़ा
भीष्म पितामह सा बधिर-मूक बना
चीर हरण, लूटपाट नित दंगे-फसाद
मजहब के नाम पर बस हाहाकार
देख रहा हूँ रिश्तों में छिपा व्यापार।