मानव और प्रकृति
मानव और प्रकृति
तितली ने प्रकृति से पूछा,
कितनी सुंदर, कितनी मनभावन है तेरी आभा,
कितनी गहराई है, तेरे भूतल में,
कितनी अच्छाई है तेरे अंतर्मन में।।
हर मन को तू शांत करती
खुली बांहों से हर मानव का स्वागत करती,
दे उसको हर सुख - सुविधा के साधन,
कभी न इतराती ,कभी न घमंड करती।।
आज ये मानव क्यों? मतलबी बन रहा,
अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु, तुझे ही छल रहा,
तू उसको क्यों कुछ नहीं कहती
खा चोट क्यों चुप रहती।।
बोली प्रकृति , तू जरा न चिंतित हो तितली रानी,
आज वो जो कर रहा, कल वही पाएगा
अपने जीवन की रक्षा हेतु, कल मुझे ही याद फरमाएगा
अपने किए पर वो खुद ही छला जाएगा।।
फिर जागेगा, मुझे संवारेगा,
अपने जीवन रक्षा हेतु, एक - एक पेड़ लगाएगा,
मेरी सुंदरता, मेरे वर्चस्व को फिर स्थापित करेगा,
ये मानव अपने स्वार्थ हेतु, मुझे फिर से सींचेगा।।