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Rinku Bajaj

Others

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Rinku Bajaj

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माँ

माँ

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माँ की कोई परिभाषा नहीं

खुद में ये एक भाषा है

ममता का सागर है ये

सब की ये अभिलाषा है !!


निराश पलों में जीवन के

अटल खड़ी एक आशा है

निराशा को भस्म कर दे

दुनिया देखे तमाशा है !!


काली चंडी दुर्गा है ये

बच्चों पर गर आंच आये

देवी से बन जाए चंडिका

कोई ना उनको भहका पाए !!


ममता की ये मूरत है

मनमोहिनी सी सूरत है

दिखती है कमज़ोर मगर

सब की ये ज़रूरत है !!


है तो माँ एक काया सी

घने पेड़ की छाया सी

आँचल इसका अम्बर जैसा

समेट ले चाहे दुख हो कैसा !!


माँ है कोई त्योहार नही

जो इसको हम मनाते है

हर दिन है बेकार अगर

हम एक दिन जतलाते हैं !!


पल पल नमन है उस माँ को

जिसने हमको जन्म दिया

एक दिन माँ के नाम किया तो

चुकता नहीं अहसान किया !!


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