मां
मां
मां है तो दीवारें बनती नहीं।
छत कभी टूटती नहीं।
खुद के कदम रोक लेती है।
कभी रुक रुक कर बढ़ती है।
अपने से आगे अपना परिवार रखती है।
आज मां है तो आंसू पुछ जाते हैं
थपकियों से उलझे काम सुलझ जाते हैं।
कल जब रिश्तो की मजबूत कड़ी न होगी।
जाने लड़ियां कहां-कहां बिखरी होंगी।
मां के जिक्र से ही होता शक्ति संचार है।
मां है तो वात्सल्य अपार है।
मां है तो सारा संसार जीत लिया है।
मां के चरणों में ही हर रिश्ता समझ लिया है।
जिसके होने से बचपन जिंदा है।
उसके ना होने पर कौन बच्चा, कौन बड़ा है।
कुम्हार की तरह ही तो है मां।
पहले आकार फिर संस्कार देती है।
हर अहंकार पर प्रहार करती है।
धीरे-धीरे सीरत संवर जाती है।
मां की सूरत ही नजर आती है।
माँ वो पक्का धागा है।
जो रिश्ते मजबूत बनाता है।
हो जाए कितने भी मतभेद,
मनभेद नहीं लाता है।