माँ मेरी
माँ मेरी
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मिली जन्नत से हमे जब लाड
स्नेह में उसके हम फिर फंस गए
ममता के उस जहां में
क्रीड़ा करते हम फिर रह गए
होश न रहा इस जग का
की हम यू किधर फिर फंस गए
राज है कैसा इस आंचल का
की सहारा इसी का फिर लेेते रहे
माँ के इस ममता के जादू से
हम को यूँ दुआ फिर मिलती रही
होके पीछे हम सबसे
मंजिलो का किनारा फिर मिलता रहा
ममता के आंचल से
हम को दुआ फिर मिलती रही।।
