माँ की यादें
माँ की यादें
रूठता नहीं अब मैं ! जानता हूँ कि मुझे मनाने वाली वो मेरी माँ नहीं रही । हाँ उसी माँ कि बात मैं कर रहा जो मेरे रूठ जाने पर मुझे मनाती थीं । बहला - फुसला कर मुझे आखिर मना ही लेती थी । गर कभी मैं इनके प्रलोभनों से भी नहीं मानता ! तो माँ खुद रूठ जाती । तब मैं उनको मनाता ।पता चलता कि मुझे मनाने के लिए ही तो रूठी थी मुझसे मेरी वो प्यारी माँ! गलती करने पर छुपाता नहीं अब मैं ! जानता हूँ कि वो मेरी सिपाही! माँ नहीं रहीं जो छान -बीन करके मेरी चोरी जान जाती । पेश ऐसे आतीं वो जैसे उसे कुछ मालूम ही नहीं ! मैं भी पूरे तसल्ली से राहत की साँस लेता । मगर वो मेरी माँ तभी मुस्कुरा देतीं। मैं भी पलभर के लिए शरमा जाता ।फिर गोद में उसकी लिपट जाता ,आँचल में ही उनकी जन्नत से भी ज्यादा राहत - सुख पाता ।
जिद् अब करता नहीं मैं! जानता हूँ कि मेरी जिद्द पुरा करने वाली मेरी माँ नहीं रही! हाँ वही माँ जो मेरे जिद्द को खुद अपना जिद्द बना लेती। पिताजी से जिद्द कर खिलौनें मुझे दिलाती ।मेरी हर जिद्द को वही तो जरूरत समझ पाती थी । अब जिद्द कर किससे मैं ???
रोता नहीं अब मैं! जानता हूँ कि मेरी आँसुओं को अपने सजल नयनों से मोती तुल्य बहाने वाली नहीं रही । हाँ वो,वही माँ ही तो थी जो मेरी हर तकलीफ को मुझे होने से पहले ही जान जाती थीं । अब वो तकलीफें बाँटू किससे मैं ।सुनने - समझने वो मुझे संवारने वाली मेरी माँ अब नहीं रही ! फिर ढूंढ रहा हूं उसे शायद मुझे वो फिर से मिल जाये!!
