माँ के हाथ की रोटी साग
माँ के हाथ की रोटी साग
बचपन में माँ की बनाई रोटी-साग,
घी संग रोटी खानी आती याद!
महँगे होटल के लंच डिनर में,
खाने में अब वो न मिलता स्वाद!!
चौके में अपने पास बिठाकर,
माँ हाथों से मुझे खिलाती!
गर्म दूध का बड़ा गिलास,
माँ झटपट ला मुझे पिलाती!!
रूखी-सूखी कुछ भी माँ देती,
खाकर संतुष्टि मिल जाती!
पनीर, मटर, चाइनीज व्यंजन से,
खाने में न वह अब तृप्ति होती!!
पढ़ कर ज्यों मैं स्कूल से आता,
माँ पूछे, खाने के लिए क्या लाऊँ!
दोस्तों संग खेल के चक्कर में,
बिन खाए अक्सर भग जाऊँ!!
माँ के हाथों से बनी वो चटनी,
आम का हो मुरब्बा-अचार!
कढ़ी-चावल औ मटर की तहरी,
खाने में रहता माँ का प्यार!!
वो बचपन की यादें हैं आती,
खाने में मैं कितना लापरवाह!
भूख लगे माँ बनाती झट से,
माँ करती कितनी परवाह!!
