माँ का जन्मदिन
माँ का जन्मदिन
सुबह सुबह की चहल-पहल में जो मुस्कुराती थी, वो माँ थी।
सबके जन्मदिन को त्यौहार सा मनाती थी, वो माँ थी।
वो माथे का टीका थी और सुबह की पूजा भी,
जो हमारे घर आने का इंतज़ार करती थी, वो माँ थी।
कभी चोट लग जाए तो डांट माँ थी,
और मेरी हर चोट का इलाज भी माँ थी,
रात की नींद थी और सुबह का जागरण भी माँ थी
हमारे हंसते चेहरों का जो कारण भी माँ थी।
न जाने कब हमारी नींद खत्म हो गई
और सुबह का जागरण खत्म हो गया
पता नहीं कब चेहरे की मुस्कान चली गयी
अब तो माथे के टीके की लाली भी।
अब चोट लगने पर दवा भी खुद लगा लेते हैं
अब खुद से ही खुद को समझा लेते हैं
अब तो आंसूं भी जगह देख के आतें हैं
बस आपकी याद को नहीं रोक पाते हैं।
तुम धन्य हो माँ, तुम से ही मै हूँ,
मेरा अस्तित्व भी तुम से है और मेरी प्रेरणा भी तुम हो
आज का दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन है
क्योंकि आज "माँ का जन्मदिन" है।