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Kusum Joshi

Children Stories

3  

Kusum Joshi

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मां और बादल

मां और बादल

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माँ तुम अपनी लाठी लेकर बादल को हटा दो,

या अपने गुस्से से तुम उसको ज़रा डरा दो,

जब हट जाएंगे काले बादल मैं खुश हो जाऊंगा,

बादल के पीछे सितारों में फिर खो जाऊंगा।


ये बादल काले काले आसमान को ढक देते हैं,

नीले कागज़ पर जैसे कई कलाकारियाँ करते हैं,

कभी बनाते हैं कोई चेहरा कभी मुझे डराते हैं,

इसीलिए ये बादल मुझको कभी नहीं सुहाते हैं।


ढ़क देते हैं नीले गगन को और फिर गरजा करते हैं,

जब भी माँ मैं खेलना चाहूँ ये तो बरसा करते हैं,

रात में चंदा मामा भी इनके पीछे छिप जाते हैं,

इसीलिए माँ बादल मुझको बिल्कुल नहीं सुहाते हैं।


अब माँ तुम ही इनको ज़रा दूर दूर भगा दो,

या इनको ये बात तुम अच्छे से समझा दो,

मैं खेल रहा हूँ अभी धरा पर ना बरसें ये इन्हें बता दो,

ना ही मेरे चंदा को ये ढ़क लें इतना सा समझा दो।


माँ जब मैं नादानी में ज़िद तुमसे कोई करता हूँ,

तब जैसे मुझको डांटकर तुम चुप करवा देती हो,

वैसे ही बादल को भी माँ डाँट ज़रा लगा दो,

या फ़िर अपने गुस्से से तुम उसको ज़रा डरा दो।


ओ माँ मेरी प्यारी माँ इतना तो तुम कर दो ना,

वो लंबी वाली लाठी लेकर बादल को हटा दो,

जब हट जाएंगे काले बादल मैं खुश हो जाऊंगा,

बादल के पीछे सितारों में फिर खो जाऊंगा।



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