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Shailaja Bhattad

Others

5.0  

Shailaja Bhattad

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ललकार है।

ललकार है।

1 min
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सब कुछ ठहरा-ठहरा सा है

जो जहां है बस वही रुका रुका सा है

ऊपर उठने की चाह है

जरा जरा नहीं पूरा पाने की दरकार है।

लेकिन जोश खामोश है

चुनौती में ऊहापोह है

राहें वीरान हैं

परछाई भी विस्मित, विमूढ़, हैरान है।

तनहाई का साथ है

मन परेशान है।

हाल बेहाल है ।

झुकी झुकी सी रुकी रुकी सी चाल है।

किसी करिश्मे का इंतजार है

रफ्तार को ललकार है।


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