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Yashvi bali

Others

3  

Yashvi bali

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लकीरें या तक़दीरें ….

लकीरें या तक़दीरें ….

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क्या ले के आए थे …..

ख़ाली हाथ ही जाना है

कुछ साथ ना जाएगा ..

ये तय है …

बस ये ही माना है …


किस ने किया …. 

यह तय ….पता नही 

ग़र ऐसा ही होता ….. तो 

ना कोई रंक होता … ना राजा 

ना कोई खुशनसीब … कहलाता 


बदक़िस्मती का रोना …

ना ही ……..कोई रोता

हाथ बनाए जब ….. उस ने 

कुछ तो सोचा होगा ..

लकीरों को सब देखते हैं 

इन में कुछ ना कुछ तो होता होगा 


बस यही है ….. वो कर्म हमारे जो      

बन गयी हैं लकीरें …..

ना झुठलाया जा सका इनको 

ख़ुशक़िस्मत हैं वो 

जो कर के क़र्म कुछ ऐसा …

दुनिया में ….फिर आए

बना के इन्हें ……,तक़दीरे।


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