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Nalanda Satish

Others

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Nalanda Satish

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लकीर

लकीर

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जिन्दगी के मुश्किल मरहले 

कभी कभी दिलचस्प हो जाते है

और गुजरते हुए शाम की दास्ता 

रौशनी की हल्की लकीर छोड़ जाते हैं 


आप बताये दिल को बहलाने 

हम कहाँ जाये

जिन्दा तो दिखते हैं पर

महरूम जीस्त लेकर कहाँ जाए 


कितने चौराहे और कस्बे गुजर गये

जिन्दगी ढेले भर भी सरकी नहीं

चुटकी भर ख़ुशियों बस दरकार थी

शानो पर आकर कोई भी बैठी नहीं



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