लिख रही हूँ
लिख रही हूँ
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कविता सुननी है
तो जाओ कवियों के पास
मैं तो लालमुनिया के पर
और तोते की चोंच में
सुर्ख़,छींटकदार
रंगत लिख रही हूँ
बहेलियों की
खुसर-फुसर सुन रही हूँ
कल लिखूँगी मैं
सुर्खाब के पर में
कौन सी खूबी है
मोर,मोरनी के
धरती पर होने तक
हम निहारते रहेंगे बादल को
पंखों के फैलाव के बीच
नाच रही मोरनी के अंदर
चल रहे नृत्य से उभरे
चेहरे का भाव परखना है
हमें वही लिखना है
वही लिख रही हूँ।