लड़कपन सा वो बचपन
लड़कपन सा वो बचपन
याद आता है
लड़कपन सा वो बचपन,
वो वालीं मस्तियाँ,
और वो नादानियाँ।
थे यार भी अपने जैसे
टीचर के सामने भोले-भाले,
बाकी जैसे इमरतियाँ।
ना था यारों को मनाने का रिवाज
ना थी प्यार जताने की रश्मानियाँ।
ना पता था
'टेन्शन' का मतलब
ना जानते रिश्तों की गर्मियाँ।
साल भर इंतजार होता
गर्मी की छुट्टियों का
छुट्टियों में याद आतीं
यारों की यारियाँ।
प्यार मतलब
"माँ" को जानते थे बस
उससे ही थी अपनी
तो सारी खुशहालियाँ।
पापा की डांट का बुरा ज्यादा लगता था
पर पापा की एक शाबासी,
मानो थी अपनी ट्राफियां।
एक मासूमियत थी,
जो कुछ तो अलग थी
पर साथ थी शरारतें,
और बहुत सी बदमाशियाँ।
खो गयी कहीं भीड़ में वो दुनिया
थी जहाँ अपनी वाली बिंदासियाँ।
