लौट के फिर घर आया
लौट के फिर घर आया
इंसान हैं हम कोई भगवान नहीं,
गलतियाँ हमसे ना हो ये हो नहीं सकता
भटक जाते हैं रास्ता जीवन की राहों पर हम भी,
साथ छोड़ कर अपनो का गैरो से रिश्ता जोड़ लेते हैं ।
दर्द अपनो को दे देते हैं इतना ,जो वो हँसकर सह लेते हैं
करते नहीं हमसे शिकवा कोई फिर भी क्योंकि वो अपने हैं,
जिनकी खातिर दिल दुखाया अपनो का साथ उनका छोड़ गए
जब वो हम को धोखा देते हैं रुलाते हैं होश तब आता है ।
कैसे लौट कर जाएं फिर अपनो के पास
ये दर्द अंदर ही अंदर फिर सताता है ,
पर खून के रिश्ते होते ही कुछ ऐसे हैं,
लगती है जब खबर उनको हमारे गमों की माफ हमारी हर गलती वो कर देते हैं,
हमारे आंसुओ को वो खुशियों में बदलते हैं,
हर भूल हमारी को खुशी खुशी पल में भुला देते हैं ।
रास्ता भटक गया था एक मुसाफ़िर अपने स्वार्थ में,
होश जब आता है घमंड चकनाचूर हो जाता है ,
लौट के फिर घर आया मुसाफ़िर अपनों के बीच,
सुबह का भुला शाम को घर आया चेहरे पर सब की मुस्कान आयी ।
