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Dayasagar Dharua

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Dayasagar Dharua

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लाल-पीला

लाल-पीला

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हाँ कर या ना कर

पूरब की ओर आँख कर,

गेहूँ जितना लम्बा मसूर जितनी चौड़ी

दिखेगी एक सहर,

जहाँ रहते चौदह पाट

और कुम्हार तीन,

दो कुम्हार लूले-लंगड़े

तीसरे को दिखे ना,

जिस कुम्हार को दिखे नहीं

उसने बनाये तीन हाँडी,

दो हँडिये टूटे-फूटे

तीसरे का तली ना,

जिस हाँडी की तली नहीं

उसमे डाले तीन मान चावल,

दो मान के उबल गये

तीसरे का उबले ना,

जो इक मान उबला नहीं

उस पे आ गये तीन अतिथि,

दो अतिथि फूले-रोषे

तीसरा चावल खाए ना,

जो अतिथि खाया नहीं

उसने खोदा तीन तालाब,

दो तालाबें कर्दम-कीचड़

तीसरे में पानी ना,

जिस तालाब मे पानी नहीं

उसमे डूबे तीन केवट,

दो केवट इधर-उधर

तीसरे का पता ना,

जिस केवट का पता नहीं

उसने पकड़े तीन सोल,

दो सोल खिसक-फिसल

तीसरे का पेटी ना,

जिस सोल का पेटी नहीं

उसका मोल तीन पैसे,

दो पैसे लोचे-कोचे

तीसरा पैसा चले ना,

जो पैसा चला नहीं

उस पे लग गये तीन सोनार

दो सोनार अंधे-बहरे

तीसरा काम जाने ना,

जो सोनार काम जाने नहीं

उसने बनाये तीन अंगूठी,

दो अंगूठी छोटे-बड़े

तीसरा किसी को भाये ना,

जो अंगूठी भाये नहीं

उसे चूराये तीन चोर,

दो चोर को हाजत हुई

तीसरा चोर मिले ना,

जो चोर नहीं मिला

वो इस कविता सुन कर

होता लाल पीला। 


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