लाल लहू
लाल लहू
हम लाल लहू से जाने जाते हैं
पर्वत गिरते हम पार लगाते हैं।
हम जीने की कोई खबर नहीं रखते
हम मरने तक जौहर दिखलाते हैं।
हम मिट्टी से सोना उगाते हैं
हम सिंहो की छाती चढ जाते हैं।
खुद की पहचान भूले तो क्या
हम किस्मत को औकात दिखाते हैं।
हम रिश्तो के एहसास समझते हैं
हम रस्मो को दिन रात निभाते हैं।
बढ़ने की हमें तलब बढ़ी ऐसी
उल्टी धारा मे बढते जाते हैं।
हम मंजिल की परवाह नहीं करते
रस्ते खुद ब खुद मिल जाते हैं।
शोहरत मे कोई नाम भले न हो
सोहबत मे सब कर दिखलाते हैं।
हम संयम से ही पूजे जाते हैं
क्रोध मे भी हम धैर्य बसाते हैं।
प्रेम भाव मे अश्रु निकलते हैं
तो शौर्य भाव मे सब निपटाते हैं।
हम लाल लहू से जाने जाते हैं
हम लाल लहू से जाने जाते हैं।