क्यों करते उसूलों की बात?
क्यों करते उसूलों की बात?
आज समाज,
कठिन दौर गुुुजर रहा,
कोई पक्ष ऐसा नहीं,
जो हो तसल्ली बक्श,
कहीं न कहीं,
हर कोई उल्झा।
अगर एक समस्या,
हो जाती खत्म,
तो दुुुुसरी जन्म लेेती,
ये सिल सिला,
बेरोकटोक चलता जाता,
अब तो दिमाग,
इस बात पर पहुंच गया,
शायद यही जीवन है।
ऐसा नहीं समाधान,
नहीं निकलते,
अच्छे से अच्छे,
सामनेे आते,
लेकिन ंहम इंसानों की,
पुरानी दुर्बलताा,
हर समाधान को,
अपने फायदे अनुसार,
शायद लागू करना,
कुछ समय के लिए,
तो लाभ पहुंचना,
और बाद में,
उससे जुड़ी,
और समस्या का पैैैैदा होना,
फिर सबका,
उसमें उलझनाा,
और समाज का,
ऐसे ही ऊंची नीच के साथ,
आगे कदम रखना।
ये बात भी सही,
समाज कभी संंपूर्ण नहीं होता,
इसमें मंथन चलता रहता,
लेकिन अब नीलकंठ,
कहां से,
कलयुग में लाएं,
जो जहर पी लें।