क्या, माँ भगवान नहीं है ?
क्या, माँ भगवान नहीं है ?
क्या आपने भगवान को देखा है ?
निकट से महसूस किया है?
उस काल्पनिक, अनंत शक्ति को?
मैं मंदिर की उस पाषाण प्रतिमा
अथवा कपोल कल्पित प्रभु पर
आकर्षित नहीं कर रहा आपको ।
मैं पुष्टि चाहता हूं आप से,
उस प्रतिमूर्ति की जिसमें तथाकथित
भगवान के समस्त गुण विद्यमान हैं।
दया, करुणा, स्नेह ,ममता, क्षमा और
पालन करना ब्रह्मांड का ।
संहार करना उन त्रुटियों का जो
निकृष्ट हैं,अमानवीय हैं ।
यही है वह जिसे आपने देखा ही नहीं
अपितु नजदीक से महसूस किया है ।
जो स्पष्ट है , जो साकार है ।
सृष्टि की रचना अपूर्ण थी जिसके बिना ।
जिसने संसार को हमेशा दिया ही दिया है ।
बदले में ना मांगा है ना कुछ लिया है।
उच्चरित होते ही वह हृदय को
असीम गहराइयों तक शीतल,
तरंगित व आनंदित कर देताहै।
वह शब्द है "माँ " ।
परंतु आज निजी स्वार्थ और
पश्चिम की चकाचौंध में आकर
हमने उसे दूर बहुत दूर धकेल दिया है,
वृद्ध आश्रमों में "माँ " का तन आज
कितनी वेदनाएं सहता जा रहा है ।
माँ के चेहरे पर लकीरों का
ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है।
आज वह अर्ध मूर्छित सी अवस्था में है ,
और हमें उसकी पहचान नहीं है ।
"उल्लास" पूछता है आप सभी से
क्या " माँ " भगवान नहीं है ?
बताइये न, क्या "माँ "भगवान नहीं है!
