कविता
कविता
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बहुत दिनों के बाद
कल बस स्टैंड पर वह मिली
उनकी और मेरी नज़र
एक दूसरे से मिली।
वह थोड़ा मुस्काई
प्रत्युत्तर में
मै भी थोड़ा मुस्काया
उसने घड़ी देखी
मेने कैलेंडर पर नज़र दौड़ाई
उसने मन ही मन
विचार किया
अरे,
यह तो चार बजे यहाँ आता है आज पाँच बजे कैसे ?
मै भी मन ही मन बुदबुदाया
यह तो शनिवार को
यहाँ आती है , आज
रविवार को कैसे ।
यानी जमाने से बचते बचाते
दोनो की ही नज़र
एक दूसरे पर टिकी थी
शायद इसीलिए
अनजान बनते हुए
अर्थपूर्ण ढंग से
दोनों एक दूसरे की और
अभिवादन की मुद्रा में
हाथ हिलाकर मुस्काने लगे ।