कविता- ठंड में ठिठुरती ज़िन्दगी
कविता- ठंड में ठिठुरती ज़िन्दगी
कड़कड़ाती ठंड में ठिठुरती जिंदगी पनाह मांगती,
ओढ़ा दो कंबल मिले राहत जिंदगी परवाह मांगती,
दिन भर कूड़ा कचरा समेटना जूठे पत्तलों चाटना,
हड्डियाँ हिलाती बदन कंपाती गर्मी की चाह मांगती !
बैठाकर रिक्शे में सवारी पहुँचता उसके मंजिल तक,
खुद मंजिल पता नहीं मुर्दा उम्मीदे गुनाह मांगती,
ईंट भट्टों बोझ ईंटों उठाकर बच्चो को दो निवाला खिला,
अंधेरी ठंडी रात बिस्तर संग बच्चो पुआल मांगती !
घोसलों में दुबके चूजों चिड़ियाँ चुन दाना खिलाती है,
पंखों बीच छुपा बच्चो बचा माँ खुद वाह मांगती,
घास पेड़ो के पत्तों कलिया गुलाब मस्त संग बूंदों ,
घने कोहरो मे लिपटी रात बंदगी दरगाह मांगती !
आमद शुबह की लाली ओस बूंदों की बिदाई,
सर्द हवाओ पंख सवार रात बिस्तार मांगती,
कड़कड़ाती ठंढ मे ठिठुरती जिंदगी पनाह मांगती !
