" कविता का स्वप्न "
" कविता का स्वप्न "
हमारी कल्पना ही
हमारी कविता है
नए विषयों को
लेकर रोज आती है !
कभी आराम
उसके पास कहाँ
नयी सोच लेकर
सब दिन आ जाती है !!
अभी मेरी कविता
सो रही है ,
शायद कोई
स्वप्न देख रही है !
उसको बिलखते
देख रहा हूँ
लगता है कोई
व्यथित भारत की
झलक देख रही है ! !
बिलखती माँ बहनें
घरबार छोड़ अपने
दूध पीते बच्चों को
लेकर न जाने
कितने दिनों से
अपने अधिकारों के लिए
ठंडभरी रातों में
गुहार लगाती रहीं
पर यहाँ तो शासकों ने
कमाल कर दिखाया
ये मर जाएँ ये मिट जाये
देशद्रोह के आग में
ये यूँ ही जलते रहे !!
"झूठे वादे हम करके सत्ता
को कितने प्रयत्नों
से पाया है !
अब इनके साजिशों को
बड़े करीब से
पहचाना है !"
कविता ने स्वप्न से जग कर
हमें झकझोर कर जगाया ,
अपने स्वप्न का रहस्य
हमको फिर बताया !!
"मेरी व्यथा को
अपनी लेखनी में
स्पष्टता से उतार देना
हो सके तो शासकों को
लेखनी से अपनी बात कहना !"
