कुर्बानियाँ मात पिता की
कुर्बानियाँ मात पिता की
जाने अनजाने कैसे मैंने
विपदा को गले लगाया।
किया प्रतिकार मात पिता का
संस्कारों को अपने भुलाया।।
क्या क्या स्वप्न संजोये उन्होंने
किस किस दर की होगी फ़रियाद।
उन्हीं माँ बाप से की बहस क्यों
कुर्बानियाँ उनकी रही न याद।।
कैसा अपने पर मैंने
आधुनिकता का रंग चढ़ाया
जाने अनजाने कैसे मैंने
विपदा को गले लगाया।।
हरदम की मनमानी मैंने
फरमाइशें पूरी करवाई।
जज्बातों संग खेला उनके
मरने की दी दुहाई।।
कैसे उनके सुंदर स्वप्न को
पल भर आज भुलाया।
जाने अनजाने कैसे मैंने
विपदा को गले लगाया।।
भावनाएं उनकी जान सका ना
फेसबुक संग वक्त बिताया।
जागे ले गोद में मुझ को
बाहों का झूला झुलाया।।
टोका जो कभी मेरे काम को
मैंने कितना उन्हें सताया।
जाने अनजाने कैसे मैंने
विपदा को गले लगाया।।
आज समझा मैं उनकी मज़बूरी
बनाई बच्चों ने मुझसे दूरी।
मात पिता का हाथ हो सिर पे
हो जाए हर चाहत पूरी।।
तुम कभी भी जीवन में मन
ये ग़लती ना दोहराना।
जाने अनजाने विपदा को
ना अपने पास बुलाना।।