कुंठित चित्तवन
कुंठित चित्तवन
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चित्तवन मेरा कुंठित है
निराशा जाल में बाधित है
कर्म मेरे बाध्य हैं
सुमिरन तेरा नैतिक है
तूने क्या दिया था
मैंने क्या बना दिया
सोच कर इसको
मन मेरा असाध्य है
इधर भी कूड़ा
उधर भी कचरा
मेरी इच्छाओं की
ही देन है
शानों-शौक़त के
अंतरंग में बना दिया
तुझे नरक है
न ये तेरा दोष है
न ही तेरा पाप
ये तो है कुंठित मानव के
कर्मों का संताप ॥