कुछ कविताएँ
कुछ कविताएँ
स्वार्थों के स्विमिंग पूल
टोपी और चोटी का अब क्या भरोसा !
भरोसेमंद रह गई है चम्पाबाई
ईमानदार रह गया है कसाई
क्या बुझाते हो मेरे भाई
अब ताज नहीं पहनाए जाते
अब राजमहल और दुर्ग नहीं बनाए जाते
अब स्वार्थों के स्विमिंग पूल बनते हैं
स्विमिंग सूट पहने,
गलबहियां डाले भवसागर पार करते है
सच्चीदानंद रूप को प्राप्त करते हैं
मिसेज तपन
मिसेज तपन ’अंगड़ाइयां ’ पढ़ती है
अमिताभ के ब्लोअप देखती है
कहने को चालीस की है
मगर दिखती पच्चीस की है
खुजराहो की मूर्तियों सी मुद्राएँ बनाती है
उन्हें मुद्राओं से प्यार है
बस अब तो वह तैयार है
रुज लिपस्टिक पोतकर
बालों को पूरा खोलकर
जब वह बैठती है स्कूटर पर
पीठ से उनकी पूरी सटकर
दबाव बढ़ता ही जाता है
एक्सीलेटर दबता ही जाता है
मिसेज तपन को याद पड़ता है
बच्चे स्कूल से लौट आए होंगे
जरूर घर पर हाय तौबा मचा रहे होंगे
मगर मिस्टर तपन के बॉस के घर पार्टी है
जाना जरूरी है
बॉस की पार्टी ही असली पार्टी है
बाकी पार्टी पोलिटिक्स से उन्हें क्या मतलब
सीधे पार्टी में पहुंचे
हैलो हाय /हैलो हाय !
बाँह कमर में डाले
टांग में टांग डाले
बॉस के भद्दे मजाक पर
मिसेज तपन खिलखिलाती है
मिस्टर तपन कहते है, गुड गर्ल
लो बोलो चालीस पार औरत के लिए गुड गर्ल
गुड गर्ल मुस्कराती है
इशारे से समझती है
तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है
मिस्टर तपन फुसफुसाते हैं
अरे ये तो औरत की आन है / पार्टी की शान है.
अधिकारी पति
मेरे पति अधिकारी है
ऊपर से सरकारी है
बहना क्यों चिन्तित होती हों
अपना दुखड़ा क्यों रोती हों
मैं सब ठीक कर दूंगी
न माने तो कैकयी का रोल कर दूंगी
उनके बॉस बड़े सहृदय है
उनका मुझ पर पूरा स्नेह है
कम बोलते हैं डेढ़ इंच मुस्कान ओढ़ते हैं
मेरी बात नहीं टालेंगे
तुम्हारे लड़के को नौकरी पर लगवाएंगे
बहना मुँह फाड़े देखती है
अपनी किस्मत को कोसती है
पूछती है
मुझे उनके यहाँ जना होगा?
उनके सामने गिडगिडाना होगा
नहीं,बोली वे
छोटों को मुँह नहीं लगाते है
उनसे मस्का नहीं लगवाते हैं
बहना बोली मन ही मन
आप बड़े लोगों की बात और है
हाँ हम मेहनत करनेवाले
छोटे लोगों की बात ही और है
गजेटेड अफसर
एक साहब, सूटेड बूटेड
ब्रीफकेस हिला रहे थे
अपनी पहचान बना रहे थे
मैंने पूछा दोस्त से
ये क्यों खम्भे से सीधे जा रहे
ये क्यों इतने अकड़े जा रहे
क्या इनकी हड्डी में लोच नहीं
दोस्त बोला ऐसी कोई बात नहीं
इनके हत्थे गई है पड़
गजेटेड की स्टील छड
घुस गई जो रीढ़ में
पैठ गई जो पीठ में
ये झुकती है स्प्रिंग की तरह
ये बल खाती है पतली कमर की तरह
लेकिन कहाँ
जहाँ चेंबर नम्बर एक लिखा है
मैनेजर जहाँ लिटा पड़ा है
वहाँ
जीभ तालू से सट जाती है
घिघ्घी पूरी बंध जाती है
यस सर, सॉरी सर के साथ
पूँछ हिलाई जाती है
इनकी मत पूछो भैया
इनके करतब मत गुनों भैया
इनकी महिमा अपरम्पार है
इनका नहीं पाया है किसी ने पार
बड़े बड़े अफसर
वर्दियों में कसे हुए
सूट में सजे हुए
बड़े बड़े अफसर है
अफसराएँ यानी अफसरानियाँ
फूल मालाएं लिए हुए
मंगल गीत गाती हुई
मंगल कलश ढोती हुई
आरती के पद गुनगानती हुई
मन्त्री को घेरे है
स्वागतम के फेरे है
होठों पर जीभ फेरे है
यह तरीका दरबार का
मैनर्स एटिकेट का
यह अफसरानियों का इस्तेमाल नहीं
यह मन्त्रीजी का अभिनन्दन ही नहीं
उनका मनोरंजन भी है
ताकि मंत्रणा में किसके भाई
भतीजे, मामा दोस्त या ताई
का ट्रांसफर हो किसे ठेका मिले किसका लाइसेंस पास हो
ये तो वे ही जाने जो उनके आसपास हो
कड़े मिजाज के अफसर
अफसर बड़े थे
मिजाज के कड़े थे
चपरासी अन्दर घुसा ही था
कि बरस पड़े
चपरासी सहमा सा सुनता रहा
अफसर की बात को गुनता रहा
ख़ूब सोचा, ख़ूब समझा
खता क्या हुई यही नहीं समझा
समझाया उन्होंने
दफ्तर के सौ काम नहीं किये
वे सब गिनवा दिये
चपरासी सोच में डूबा
अब तो हों गया कुंडा
लेकिन पहले तो कभी ऐसा न था
जरूर हुई कोई गलती
याद आया
कल मेम साहब ने कहा था
किन्तु आटा नहीं पिसवाया था
इसीलिए अफसर खिसियाया था