क्षितिज
क्षितिज

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मैं अपने अधूरे अक्षय कोष को,
निरंतर पर्याप्त बनाने के,
साधनो मे जुटा रहता हूँ,
जिस तरह धरती और आकाश के,
मिलने को क्षितिज का
नाम दिया जाता है,
जो कि एक भ्रम मात्र होता है,
और मेरा साधन जुटाना भी,
उस क्षितिज मात्र की
तरह मिलने वाला,
खोखला और अधूरा भ्रम है,
जीवन मे अर्जित वेदना, असल मे,
संवेदना को गति
प्रदान करने का
एक माध्यम है,
जो हमारे भीतर ही कहीं
निमित्त और निहित रहता है,
उसका अनुकरण और अनुसरण ही,
हमारे लिए जीवन के सच्चे और सही,
अर्थो का मूल्यांकन करना है