कृष्णा लौट आओ
कृष्णा लौट आओ
कृष्णा,
तुम लौट आओ,
तुम क्यों चले गए,
अपनी बांसुरी की धुन को यूं तन्हा छोड़ के,
चाहे हो तुम रास रचाए गोपियों संग वृंदावन में,
या माखन खाने पहुंच गए,
गोकुल की गलियों में
या हो यदि तुम उपदेश दे रहे पार्थ को महाभारत के रण में।
कृष्णा लौट आओ,
फिर तुम इस अधर्मी कलयुग में,
जहां लूट रही लाज द्रोपतियों की हर पग में,
और इंसानियत का क़त्ल हो रहा इस जग में,
कृष्णा,
क्या इसी लिए लड़ा था रण अधर्मियों से महाभारत में?
जहां सत्य बेबस,परेशान, लाचार है और स्तब्ध भी,
क्या ये वही दुनिया है जिसे छोड़ गए थे
तुम हमारे लिए,
खुद की कल्पना में?
तुम्हें एक बार पुनः आना होगा,
इस कलयुगी रण में
पर पूरी तैयारी से,
क्योंकि अब हर मोड़ पर बैठे मिलेंगे
दुर्योधन,शकुनि,अधर्म,असत्य,पाप का हठ लिए,
सत्य को परास्त करने।
