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अच्युतं केशवं

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अच्युतं केशवं

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"कर्मयोग निष्काम "पोत है .

"कर्मयोग निष्काम "पोत है .

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"कर्मयोग निष्काम "पोत है कर्मभोग पतवार

ध्रुव तारे की और चला चल होगा सागर पार

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क्यों मन मितवा तुझे अभीप्सित वह देवों का लोक

देहदीप को पूर नेह से फैला दे आलोक

यज्ञ वेदिका उर हो जाए

हार जाएगा मार

ध्रुव ...............१

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कबतक देगा देख भाग्य भी कटु पतझड़ का साथ

कितनी उमर लिखा कर लाई अमा-अँधेरी रात

छिपा सूर्य को रख पायेगा

कबतक देख तुषार

ध्रुव...................२

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सजा धजा ले धरा त्वरा से रंग-रंगोली से

गले भेंट ले री जल्दी अपनी हमजोली से

पिया पुकारे द्वार संग हैं

डोली और कहार

ध्रुव ...............३

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संध्या में सारंग गुनगुना सुबह भैरवी-राग

होली दीपावली दशहरा और श्रावणी फाग

गाले और बजाले जबतक

अक्षत तार सितार

ध्रुव ..................४

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बने बिराने भी अपने यूँ बजा प्रेम का ढोल

नीर-क्षीर दोनों में मीठे बोल बताशे घोल

चल्लमचल्ला में करजा कुछ

याद करे संसार

ध्रुव ..............५

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विश्व प्रशंसा करे याकि हो तेरी जगत हँसाई

किन्तु तोड़ना कभी नहीं रे सच के साथ सगाई

मान मिले अपमान मिले या

फूल मिलें या खार

ध्रुव .................६


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