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तृप्ति वर्मा “अंतस”

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तृप्ति वर्मा “अंतस”

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कोरोना काल

कोरोना काल

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रोजमर्रा की ज़िन्दगी से 

थका सा आदमी

रोज़ रोज़ की भागम भाग से 

ऊब गया था

गाहे बगाहे शिकायतों के 

पिटारे खोलता था

अपनी असफलताओं के 

कारण तौलता था

कभी धोखा हुआ था

कभी बीमारी

जिन कारणों से 

उसकी किस्मत हारी


कभी मौका ही नहीं मिल पाया

और कभी किसी और ने बाज़ी मारी

और न जाने कितने ही दिनों पर, 

लोगों पर, व्यवस्थाओं पर 

उसने आरोप लगाया

अनुसार उसके इन कारणों से 

उसे अपने परिश्रम का

श्रेय न मिल पाया

और अब उसकी सबसे बड़ी शत्रु थी 

उसकी व्यस्तता


वह बहुत व्यस्त था अपनी दिनचर्या में

इसी व्यस्तता ने उसके शौक छीने थे

कई बार उसे शिकायतें करते सुना 

"समय नहीं मिल पाता "

समय का चक्र घूमा

और प्रभु ने उसकी सुन ली

आयी एक महामारी

फ़ैल गयी दुनिया में सारी

ले आयी एक भय भयंकर 

" रहेगा तू या रहूँगी मैं इस धरा पर "

 शत्रुता ठान के आयी हो मानो पुरानी

छुप जाओ अपने घरो में 

अन्यथा होगी तुम्हारी हानि


स्वयं को जो उच्च कोटि जानता है

प्रजाति अन्य तुच्छ मानता है

उसी अन्य प्रजाति से उत्पन्न 

वहीँ से आयी है ये

अभिमानी मनुष्य की प्रजाति से टकराई है ये

है सेनाएँ तैयार 

सजे है अस्त्र शस्त्र में सिपाही 

हमला है बड़ा अनजान 

आक्रमण का न था कोई अनुमान 

हो रहा है वार, बारम्बार

हो रही है मनुष्य की सेना ज़ख़्मी

कट रहे है शीश, हो रही है छतिया छलनी


छुपा है जनमानस घरों में 

किलाबंदी भूपटल है

उधर शत्रु की सेना भी 

बहुत ही रणकुशल है

घुसपैठ जानती है 

शिकार पहचानती है 

चढाई करती आ रही है 

सेना मनुष्य की इससे 

मात खा रही है 

युद्ध अभी भी ज़ारी है 

कर रहा मनुष्य 

और भी तैयारी है 


एकाएक मुझे उसका विचार आया 

जो व्यस्त था और था दुखी 

उसके लिए मेरा मन हर्षाया 

और हुई ख़ुशी 

सोचा कि

अंततः उसे अपने अपने व्यस्त जीवन से 

कुछ पल मिलेंगे 

कर पायेगा वो अपने छूटे 

शौक पूरे

कुछ कष्ट होगा जीविकोपार्जन में 

परन्तु ये प्रजाति उच्चतम है 

थोड़ा व्यथित होगी 

फिर शीघ्र ही व्यवस्थित होगी 

समय मिलेगा 

अपनी अभिरुचियों पर कार्य करेगी

करेगी कुछ छूटे काम पूरे 

कम होगा कष्ट थोड़ा असफलताओ का 

करेगी गर्व अपनी नयी उपलब्धियों पर


परन्तु ये क्या?


मनुष्य प्रजाति तो मनुष्यता से गिर रही है 

आरोप -प्रत्यारोप के चक्र में घिर रही है 

धर्म, जाति, देश, प्रदेश, राजनीति इत्यादि 

इन्ही के मुद्दे गर्म हैं हर ओर 

बहस छिड़ी है पुरज़ोर 

अर्धज्ञान, पूर्णज्ञान , 

कुटिलज्ञान, जटिलज्ञान 

एवं काल्पनिक ज्ञान 

मचा है गृहयुद्ध भीषण 

मनुष्यता तार तार है 


अंततः मनुष्य ने अपनी असफलता का 

स्वयं ही पुनः खोल लिया द्वार है।



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