कन्यादान
कन्यादान
एक अजीब सी उलझन मन में मेरे और आँखों में बेकरारी है,
एक चुटकी सिंदूर और कुछ रश्मों के बाद मेरी दुनिया बदलने वाली है,
बचपन से झूठ सुना की पिता मजबूत होते हैं,
जब भींगी पलकों को उठाकर मैंने देखा था,
एक पिता होकर भी कोई किस तरह टूट कर रो रहा था,
उस रोज़ उस पिता ने कितना बड़ा दान कर दिया,
अपने खुशियों का जहान किसी ओर के नाम कर दिया,
थोड़ा मुस्कुरा कर आँखों में दर्द भरे आँसू छिपाकर,
खुद को गरीब कर अपने भाग्य को दबाये,
किसी दूसरे घर का सौभाग्य बना डाला,
बरकरार रखने को अस्तित्व कन्यादान का,
बखूबी विधि का विधान निभा डाला,
निकल रही थी जान जिस्म से पर खुद को मुस्कुराए रखा था,
अपनी कांपती हाथों से हस्त मिलाप कराए रखा था,
जिसे पाला था बड़े ही प्यार दुलार से,
उसे पल में अलग कर दिया अपने परिवार से,
जिस पिता ने अपने अंश का दान किया,
सुना कर अपना खिलखिलता आँगन उसी ने अपनी बेटी को सोलह श्रृंगार का अधिकार दिया ।
