कनेर का पुष्प
कनेर का पुष्प
पीत वर्ण
बृहत आकार
अद्भुत सुंदर
अछूत जैसा
मंदिरों से दूर
पुष्प माल से अलग
जीवन तत्व का ज्ञाता
देख भेद मुस्कराता
दुनिया बनाने बाले
यह कैसा भेद
रंग रूप में न कम
पर सुगंध रहित
क्या भूल मेरी
मेरा क्या साहस
भूले जग के स्वामी
गंध देना पुष्प को
भूल निज अपमान
करता साधना गुपचुप
तितलियों की भीङ
भ्रामरों का गुंजन
पुष्प बू रहित पर
अकारण तो नहीं
एक कर्मयोगी निष्काम
जी रहा जीवन कैसे
जग में उपेक्षित
सचमुच एक रोज
पायेगा साथ प्रभु का
है निश्चित, मुझे विश्वास
