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Mayank Kumar 'Singh'

Others

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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कलंक

कलंक

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कितने ख्वाब देख कर हम जिंदगी को बुनते हैं,

 मानो मकरे के जाल में हम भी रहते हैं 

जिंदगी में हमें ना जाने कितने ऊंचाई मिलती है 


 तभी तो हम नव और हिमालय की बात करते हैं 

संसार में जब- जब संचार उत्पन्न होती है 

विपदा , कलंक उस व्यक्ति के साथ रहती है ।



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