कलम
कलम
मैंने एक दिन पूछा कलम से,
तुम खुश तो हो ना,
तो आंखों में आंसू लिए बोली, उसने
अपनी जुबां कुछ इस तरह से खोली।
तुम पूछ रही हो तो बतलाती हूँ,
अपना दुख दर्द सुनाती हूँ,
पहले मेरा बड़ा मान होता था,
चहुँ ओर गुणगान होता था।
मुझे रखने वाला धनी होता था,
वो बड़ा ही गुणी होता था।
भले ही धन का अभाव होता था, पर
जन मानस पे मेरा प्रभाव होता था।
आजकल तो पैसे वालो की तूती हो गयी है,
लेखनी भी उनकी बपौती हो गयी है।
जो चाहते है लिखवाते है ,
अपने गुणगान करवाते है।
भरे बाजार में नीलाम हो गयी,
अब मैं भी उनकी गुलाम हो गयी।
पहले अपने मन की करती थी,
अब बंदिशों की करती हूँ।
पर, ऐसा नही है की
मैं पूरी तरह से लूट चुकी हूँ,
और न ही ऐसे हालत देखकर टूट चुकी हूँ।
पर कुछ है जो अभी बाकी है,
मेरे रहनुमा अभी भी बाकी है।
बहुत सी जगह अब भी पूजी जाती हूँ,
आज भी मैं वहाँ अव्वल आती हूँ।
जहाँ में अपनी मनमर्जी करती हूँ,
और अपने ही दिल की सुनती हूँ।