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अच्युतं केशवं

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अच्युतं केशवं

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कितने दिन तरसे।

कितने दिन तरसे।

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कितने दिन तरसे,

तब सावन बरसे।

चींटे नभ नाच रहे,

उग आये पर से।

होठों पर मुस्काने,

दिल में है फरसे।

राम-सिया अब भी हैं,

निर्वासित घर से।

प्यासे ही लौटे हम,

सागर के दर से।


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