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Mukesh Bissa

Others

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Mukesh Bissa

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किताबों की दुनिया

किताबों की दुनिया

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किताबों की दुनिया

कितना अच्छा वक्त 

जब रहता था

इंतज़ार एक नई किताब 

आने का

छोड़ के सारे काम

किताब नई पढ़नी थी

बिना पढ़े न दिन में

चैन था न रात में आराम

अब तो वो समय ही कहाँ


वाचनालय सुना है

पुस्तकालय भी सुना है

किताबें है बंद अलमारी में 

लगी है उन पर धूल

बीत गए है

बरस आनंद के

सुबह शाम इनके

सानिध्य में वक्त भी

अच्छा गुजरता था


हर महीने की 

बचत का उपयोग

इन पर ही खर्च होता था

परिवर्तन की इस बेला में

गुजरता है वक्त

आधुनिक उपकरणों पर

मोबाइल, कंप्यूटर पर


एक हाथ के इशारे पर 

किताबें खुल जाती है

लेकिन वो पुराना

आनंद अब कहाँ

मिल पाता है

संबंध किताबों से

विच्छेद सा हो गया हैं

रख के किताबें सीने पर

वो नींद कहीं खो गई है


किताबों की संगत में

बनने वाले रिश्ते बीत गए हैं

समय बदल गया है

आधुनिकता की बहती धारा में

सब कुछ गुम सा गया है



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