क़िस्मत
क़िस्मत
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हर तरकीब लगाई पर काम नहीं आयी
मेरी इतनी सी कमाई, किसी के नाम नहीं आयी
दिन रात दौड़ के थक गया मैं भी
कितने दिनो से वो पुरानी शाम नहीं आयी
हर कोई फिरता है इतराता सा हर जगह
इनके हिस्से में क्यों लगाम नहीं आयी ?
जीत का ताज पहनता मैं एक दिन
पर क़िस्मत ही ऐसी, की काम नहीं आयी
और हार का हल्ला हुआ नहीं, ये अच्छा है
बस ग़नीमत है की बात सरेआम नहीं आयी