मिली साहा

Children Stories

4.9  

मिली साहा

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किसान

किसान

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सूरज की लालिमा दिखने से पहले खाट छोड़ उठ जाता

लेकर हल बैलों को अपनी कर्म भूमि पर है निकल जाता,

अपनी नींद की फिक्र किए बिना डटा रहता है सीना तान

परिश्रम से बंजर धरती पर भी सोना उपजाता है किसान,

मजबूत बाहों से धरा का सीना चीरकर नये अंकुर उगाता

धूप की तपन या हो कड़कती ठंड नहीं कभी वो घबराता,

बारिश हो या हो कोई तूफान हर दिन करता अपना काम

परिश्रम से बंजर धरती पर भी सोना उपजाता है किसान,

दिन रात लगातार मेहनत कर वो दो वक्त की रोटी खाता

देश में उसके कोई भूखा न रहे वह इतनी फसल उगाता,

बाधाओं से लड़कर फसल उगाता लगा देता है पूरी जान

परिश्रम से बंजर धरती पर भी सोना उपजाता है किसान,

भूख-प्यास की चिंता न करता अभावों में जीवन पलता

अपनी मेहनत से अन्न उगाकर हमें सदा भोजन खिलाता,

फसल उसकी अच्छी हो बस दिल में यही रहता है अरमान

परिश्रम से बंजर धरती पर भी सोना उपजाता है किसान,

मेहनत का पसीना जब ओस बनकर फसलों पर चमकता

देखे थे जो ख्वाब उसकी आंखों में हिंडोले बनकर उभरता,

अच्छी फसलों को देखकर आ जाती है चेहरे पर मुस्कान

परिश्रम से बंजर धरती पर भी फसल उपजाता है किसान,

कितनी मेहनत से देखरेख कर किसान फसल उगाता है

पेट भरता है वह देश का इसलिए अन्नदाता कहलाता है,

अन्न का हर दाना अपने खून पसीने से उगाता है किसान

परीश्रम से उगाए इस अन्न का करना नहीं कभी अपमान!


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