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Sunita Katyal

Others

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Sunita Katyal

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खुद से सवाल पूछो

खुद से सवाल पूछो

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खुद से सवाल पूछो

फिर उसका उत्तर खोजो,

इक कठिन प्रक्रिया होती है

जिंदगी की दौड़ में।

कई कठिनाइयों,

कई परेशानियों से जूझते हुए

कई अनसुलझे सवाल, 

जो बार-बार दिमाग में उमड़-घुमड़

आपको और भी उलझा जाते हैं,

सोचती हूँ कभी फुरसत से

इनको सुलझाऊंगी,

कभी तन्हाई में इनके हल खोजूंगी,

पर कभी प्रश्नों का अंत नहीं होता।


जैसे वृक्ष में लगते हैं पत्ते

ऐसे ही मन में प्रश्न लगते हैं,

जब मन में प्रश्न अधिक भरे हों 

तो वो उत्तर नहीं सुन पाता है।

प्रश्नों का शोर मन के भीतर 

गूँजता चला जाता है,

जब भी मन कोशिश करता,

तनावग्रस्त हो जाता।

खिंच जाता मन और

खिंची हुई हालत में

उत्तर समझ नहीं आता।


हमारा मन एक सवाल

से अनेक सवाल बनाता है,

कुछ प्रश्न जो बुद्धि की

तलहटी से जनमते हैं,

वो बस बुद्धि की

खुजलाहट भर ही होते हैं।

उसे खुजलाने से रस आता है 

पर उत्तर नहीं मिल पाता।

मन नए प्रश्न बनाए ना

अपितु उचित प्रश्न का उत्तर खोजे,

इसे राजी करना पड़ता है,

ये बहुत कठिन प्रक्रिया है।


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