" खुद पर ही व्यंग करें "
" खुद पर ही व्यंग करें "
हम वर्षों तलक किताबों के,
पन्नों को उलटते रहते हैं !
हरेक विषयों का अध्ययन ,
हम दिन रात करते हैं !!
कहीं से बृहत् ज्ञान का ,
आलोक सामने आ जाता है !
उसी के ज्ञान गंगा में सदा ही ,
वह नित स्नान करता है !!
फिर समय के चक्र से वह ,
एक नया इतिहास रचता है !
देता है सभी को ज्ञान और ,
लोगों का कल्याण करता है !!
उनकी प्रतिभाओं का खुलकर के ,
लोग सम्मान करते हैं !
फिर साहित्य जगत में सब के सब ,
उन्हें पुरस्कार देते हैं !!
हजारों दोस्त के बंधनों में बंध के ,
हम करीब आ जाते हैं !
विभिन्य फूलों की क्यारियों में ,
हर पल हम विचरण करते हैं।
सकारात्मकता ही तो हमको ,
जोड़कर सदियों तक रखती है !
व्यक्तिगत प्रहार और व्यंग बाण ,
से ही दूरियां सब बनती है !!
हम भूल जाते हैं कि हम ,
नायक बनेंगे निज व्यंग करना पड़ेगा !
दूसरों के दुखको को पास ,
जाके हमको उसे समझना पड़ेगा!
