मजदूर
मजदूर
1 min
2.9K
बेबसी मेरी,
पैरों के छाले भी मेरे।
ख़्वाब लेकिन सज रहे,
जहां में तेरे।
लौटकर आ सकूँ
इसलिए आज जाना जरूरी है।
अपनी खैरियत बता कर।
घर वालों की जानना जरूरी है।
----------------------------------
दूसरों के ख्वाबों को बुनते-बुनते।
उसके ख्वाब उधड़ गए ।
ऊंची -ऊंची मंजिलों तले।
उसके कई जनाजे निकल गए।
******************
जज्बातों का जनाजा ,
यूं निकलते देखा है।
मजदूर की मौत पर,
आंखों में आंसू तक नहीं देखा है ।
*************
मुफलिसी का यह आलम।
फिर भी ईमान पर है कायम।
मजदूर है तो क्या ,
है हर दुख दर्द इसका जायज?