खामोशियां
खामोशियां
खामोशियां कुछ कह रही हैं
भय के साए में रह रही हैं
बताना चाहती हैं बहुत कुछ पर
बताने से वो रह रही हैं
भय ने आतंक मचाया इतना
दर्द को भी बढ़ाया इतना
आवाज़ें भी अब खामोश हैं पर
उनको है सताया कितना
खामोशियां अब ताक रही हैं
झरोखों से वो झांक रही हैं
आए कोई हल्ला करने वाला
उसकी राह वो निहार रही हैं
खामोशियों को आवाज दे सके
जो उनके भय को छुड़ा सके
है कोई ऐसा यहां आज पृथ्वी पर
जो उनकी हिम्मत जुटा सके
खामोशियां कुछ कह रही हैं
भय के साए में रह रही हैं
बताना चाहती हैं बहुत कुछ पर
बताने से वो रह रही हैं।