खामोशियाँ और यादें
खामोशियाँ और यादें
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खामोशियाँ जब
रुबरू होती है
यादों से तो
उलझ पड़ती है
एक दूजे से।
उठता है एक शोर
मचता है हलचल
दिल-दिमाग
नस-नस पोर-पोर
होता है
झंकृत।
यादें खरोंचती है
वर्षों से सोये
जख्म़ को
और
खामोशियों को
चीरते हुए
चीख उठती है
रूह मेरी
आह!
अब और नहीं......।