ख़ामोश न रहना
ख़ामोश न रहना
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आज लिखूँगा तुम्हें बिठाकर
तुम बैठे ही रहना।
कुछ कहना कुछ सुनना साथी
पर ख़ामोश न रहना।....
ख़ामोशी खुद एक सज़ा है
हरदम चुभती रहती
क्या अपराध हुआ कब कैसे
कुछ भी नहीं है कहती
बस इतनी विनती है तुमसे
जो मन आए कहना।
कुछ कहना कुछ सुनना....
जाने कब से मन बोझिल था
नहीं कभी कह पाया
बातचीत का यह अवसर भी
बहुत दिनों पर आया
अपने मन की बात बताकर
मन को हल्का करना
कुछ कहना कुछ सुनना....
फ़ुरसत की बातें कब किससे
कहाँ कौन कर पाता
मन चंचल है क्या बतलाना
कभी न थिर रह पाता
तुमसे ही उम्मीद लगी है
नेह बनाए रखना।
कुछ कहना कुछ सुनना....